भगवत प्राप्ति का मार्ग मिला - बहुउद्देशीय परमपूज्य परमात्मा एक सेवक मंडळ, मोहाडी

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मंगळवार, २७ एप्रिल, २०२१

भगवत प्राप्ति का मार्ग मिला

 भगवत प्राप्ति का मार्ग मिला

        सन् १९३३ में पुरानी जगह रहते समय मोहल्ले में पड़ोसियों से हमेशा झगडा होता था । इसलिए ठुब्रीकर घराना वहाँ उब गया था। इसलिए उन्होने दुसरी ओर मकान खरीदने की सोची । रंभाजी रोड, टिमकी मे रामेश्वर तेलघाणी के पीछे वाला झुनके सावकार का मकान बिकाऊ था । वह मकान ठुब्रीकर बंधुओं ने लेने का निश्चित किया और मकानमालिक से सौदा किया । इससे पहले उस मकान के बारे मे ऐसी हकीकत थी। वह मकान सैतानी है। उस मकान में भूतबाधाएँ है। एक मुसलमानने उस घर में पांव रखते ही मर गया । इसलिए वह मकान न खरीदे ऐसा बताकर उस मोहल्ले के लोगोंने उन्हे मकान लेने से विन्मुख करने का प्रयत्न किया । परंतु बाबा का घराणा हिन्दु संस्कृतिनुसार गुरूमार्गी था । उनके गुरू श्री. यादवराव महाराज, धापेवाडा वाले थे । बाबाके बुजर्गोने विचार किया कि हमने होम हवन, पुजा पाठ करने पर वह भूतबाधाएँ नष्ट होगी। और हम सूख से रह सकेंगे । ऐसा पक्का विचार कर उन्होने वह मकान खरीदा इस समय बाबा बारह साल के थे । फिलहाल बाबा जिस घर में रहते है यही वह मकान है।

        निश्चित किये अनुसार उस मकान में गृहप्रवेश के पूर्व उन्होने मकान की शांति करने हेतु गुरू मंत्रोसे होम हवन, पुजा पाठ किया और खुशी से उस मकान रहने आये। आसमान से गिरे और खजुर में अटके इस कहावत के अनुसार इस मकान में रहने को आने के बाद किसी को भी सुख-शांति नही मिलती थी वे सालभर भी सुखी नही रह सके । घर के लोगों को सतत् स्वप्नविकार होता था। खाना खाते समय सिटीयों की आवाज सुनाई देती । सिढीयों पर कोई निरंतर चल रहा है ऐसा आभास होता था । घर के सामने रातभर कुत्तो का भौंकना जैसे भुतबाधाओं के प्रकार चालु थे उनके घर में पैदा हुए बच्चे भी बाहर खेलते समय कुत्तो समान भौंक कर मर जाते

        इस तरह संपूर्ण परिवार दुःखी था । बाबाकें पिता श्री विठोबाजी इन्होने बहुत इलाज किया। मांत्रिक, तांत्रिक लोगों से इलाज कराया। शरीर में देवी-देवता प्रवेश करने वाले लोगों से इलाज कराया । कई मनौतियाॅ की विभिन्न तरह के इलाज करके भी परिवार में समाधान व शांति नही मिलती थी। हजारों रूपये खर्च हुए थे । भूत बाधाओं के कारण कई प्राण गवाँ चुके थे इस कारण संपूर्ण कुटूंब त्रस्त हुआ था । परिवार में शांतता नही थी । बाबा जुमदेवजी हनुमानजी की सेवा करते रहते थे । इसलिए उन्हे "हनुमान चालिसा' कंठस्थ था । इसमें ऐसा निर्दिष्ट है कि जहाँ 'हनुमान चालिसा' पढा जाता वहाँ भूत नही रह सकते । तब भूतबाधाओं का विनाश होने हेतु बाबा रोजाना दो-तीन बार 'हनुमान चालीसा' पढते थे । परंतु घर में सुख-समाधान नही था । छोटे बच्चे हमेशा बीमार होते और उन्हें कुछ न कुछ दिखाई देता । इन्ही भूतबाधाओं के कारण उनके घरमें उनके रिश्तेदार आने की हिम्मत नही करते थे। यह भूतबाधाओं का खेल लगातार बारह साल चालू था।

१९४५ साल के नवम्बर माह की घटना बाबा का रोज दो-तीन बार हनुमान चालीसा पढना शुरू था । उसी के साथ साथ हनुमानजी को बिनती करते थे कि । बाबा हनुमानजी आप कुछ तो भी योग दो और यह दुःख दूर करो।

        एक दिन बाबाके अनूज (छोटे भाई) मारोतराव घर में अकेले सो रहे थे । रसोईघर में कोई नही था और बाबा बरामदे में बैठे थे। बाबा बरामदे से जब रसोईघर में गये तब मारोतराव उठकर बैठे थे तब बाबाने मारोतरावजी को पुछा कि तू क्यों बैठा है ? तब मारोतरावजी ने पुछा कि मेरे पांव को किसने हिलाया ? और मुझे किसने जगाया ? तब बाबाने फिर से उनसे कहा कि। मैं तो अभी घर में आया और अंदर तो कोई भी नहीं है। फिर तेरे पांव किसने हिलाये थे मुझे मालूम नही । इनता कहकर बाबा आश्चर्य चकित हुए तत्पश्चात उन्होने इसका पता लगाने के लिए मांत्रिक के पास जाने का विचार किया ।

        बाबा मांत्रिक के यहाँ जाने की तैयारी में ही थे, कि तभी बाबा हनुमानजी को बिनती किये अनुसार उन्हें योग प्राप्त हुआ और उनके यहाँ कभी न आने वाला एक साधारण व्यक्ती उनके घर आया। उसने बाबा को पुछा कि, तु कहाँ जा रहा है ? तब बाबाने उपरोक्त घटित प्रकरण उस व्यक्ति के पास कथन किया । उन्होने उसे कहाँ मैं मांत्रिक के यहाँ जा रहा हुँ। यह सुनकर उस व्यक्ति को दया आयी। उसने बाबा से कहा तुम क्यों जाते हो ? मेरे पास परमेश्वरी कृपा प्राप्त करने का एक मंत्र है। वह एक सन्यासीने दिया हुआ मंत्र है । उसका विधी करने से परमेश्वरी कृपा संपादित कर सकते है एवं सभी दुःखो का विनाश होता है। यदि उस मंत्र से मै किसी को भी तीर्थ (मंत्रोच्चारित जल) बनाकर देता हूँ तो उसके दूख दूर होकर वह अच्छा होता है । ऐसे मुझे कई अनुभव आये है। तब बाबानें उस व्यक्ति से पुछा कि यह संन्यासी का मंत्र आपके पास कैसे आया? क्योंकि आप तो संन्यासी नही लगते । तब उसने जवाब दिया कि, मेरे पिता एक संन्यासी के साथ रहते थे। उस संन्यासी के मृत्युपरान्त मेरे पिता उसके पास के सारे ग्रंथ घर ले आये। पिताजीने हनुमानजी के इस मंत्र के व्दारा अनेकों के दुख दूर किये । यह करते हुए वे दोनो ऑख से अंधे हो गये । मैने स्वयं इस मंत्र का विधी कभी नही किया। जिस किसने भी यह विधी किया और करने का प्रयत्न किया उनमें से कुछ विधी करते हुए मर गये, तो कुछ पागल हुए। तत्पश्चात बाबा सोचने लगे और उन्होने मांत्रिक के यहाँ जाना निरस्त किया । कुछ देर रूककर वह मंत्र और पता बाबाने उस व्यक्ति से लिखा लिया। वह व्यक्ति मौदा इस गाँव का रहनेवाला था । उस मंत्र से तीर्थ तैयार कर मारोतराव को पीने के लिये दिया । तीर्थ पीने के बाद मारोतराव को समाधान मिला। इस कारण बाबाके मन में विचार आया कि वे स्वयं या उनके परिवार के किसी व्यक्तिने इस मंत्र का विधी पुरा करना चाहिए और परिवार को हो रहे दुःखो से मुक्त कराये । इस तरह बाबा को भगवत् प्राप्ति का मार्ग मिला । इस समय बाबा युवावस्था में अर्थात मात्र चोबीस वर्ष के थे ।

|| 🙏🙏नमस्कार जी 🙏🙏||

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