एक भगवंत का पहला गुण
बाबांने एक भगवंत की प्राप्ति की । उसके बाद वे करीब-करीब तीन माह तक विदेह अवस्था में थे । वे परमेश्वर में विलीन हुये थे । रंगारी समाज की शांताबाई के शरीर में आनेवाले भूत-पिशाच बहुत प्रयास करने पर भी बाबांने उसके शरीर में आने वाले भूत को समाप्त नही कर पाये । परमेश्वर मानव के किसी भी प्रकार के दुःख दूर कर सकता है । सद्भावना उसी की शरण में जाना आवश्यक होता है । यह ध्यान में रखकर उस महिला को पूर्णतः समाधान देने के लिये बाबा हनुमानजी के पास प्रतिज्ञा कि की उसके बाद जीवन में मैं किसी भी देव (दैवत) को नही मानूंगा । उसके पश्चात उस महिला शांताबाई को उसके दुःखो से बाबांने मुक्त किया । बाद में बाबाने वह दुःख दूर करनेवाली शक्ती की खोज करने की शुरूवात की और बाबांने एक भगवंत की प्राप्ति की।
उसी शांताबाई के घर में इन्ही तीन माह की कालावधी में बाबा निराकार अवस्था में होकर भी पुनः दुख आया । एक दिन इस महिला की सास बाबाके घर रोते-रोते अपना दुख लेकर आयी। बाबा घर में न होने के कारण वह बाबा के कनिष्ठ बंधू श्री मारोतराव इनके यहाँ गयी और रोने लगी उस समय बाबा उनके ज्येष्ठ बंधु बाळकृष्णाजी के घर में बैठे थे । उसे रोते देखकर मारोतरावजी का मन पसीजा । वे बाबा को यह बताने गये और उन्होने बाबांको बिनती की कि, “बाबा एक महिला रोते हुये आयी है । बहुत रो रही है । लगता है बहुत बड़े संकट में फंसी है । आप चलिये ।" तब बाबाने उन्हे कहा कि " ठीक है मैं आ रहा हूँ। तुम उस बाई को बगल में खडे रखना ताकि उसकी छाँव हमपर न पडे । कारण बाबा निराकार अवस्था में होने पर परमेश्वरने उन्हे ऐसी जागृती दी थी कि “सेवकपर किसी भी महिला की छाँव न पडे वरना वो जिंदा नही रहेगा ।" तद्नुसार मारोतरावने उस स्त्री को बगल में खड़ा किया बाबा घर आये और अपने आसन पर बैठे।
बाबा घर में आने पर उन्होने महिला से पुछा कि "कहो बाई आप कैसी आयी? क्यों रो रही हो? तब उस बाईने बाबां को बिनती कि की, " बाबा आप जान लो मैं क्यो रो रही हूँ। आप बाबा है। बाबा कुछ भी नही बोले। उस समय बाबा निराकार अवस्थामे वे परमेश्वर मे विलिन थे । कुछ समय के पश्चात बाबां के मुखकमल से निम्नानुसार वाक्य (वार्ता) निकले बाबा ने कहाँ ।
"नाथ गोरख, हाजिर हो जाओ।
"हाजिर बाबा ।
“जाओ, यमराज को बुलाकर लाओ ।'
"चला बाबा।
तत्पश्चात दस मिनट वे स्तब्ध रहे, उसके बाद पुनः बाबाने कहा,
“यमराज आ गये।
"हाँ बाबा मै आ गया ।"
"देखो यमराज, उस बच्चे के गले में फाँसा डाला है, उसे निकालो नही तो तेरे साथ तेरी यमपुरी उल्टी कर दूंगा ।"
'नही बाबा, मैं अभी उस बच्चे के गलेका फाँसा निकालता हूँ ।
"नही, तुम पहले जाओ, उसे निकालो, तू बेईमान है ।"
"नही बाबा, आप मेरे साथ मेरी यमपुरी उलटी कर दोगे ।
मुझपर विश्वास किजिये बाबा । मैं अभी फाँसा निकालता हूँ।
“तुम अभी जाओ और उसका फाँसा जल्दी निकालो ।'
"चला बाबा"
तत्पश्चात बाबा-थोडी देर रूके. चारोओर शांती थी । कुछ समय-बाद बाबाने उस बाई से कहाँ । “बाई तुम्हारा बच्चा उठकर बैठा है। उसे अभी ले आओ ।” उस महिला का रोना बंद हुआ। उसने बाबा को नमस्कार किया और वह हँसते हँसते घर गई । और आश्चर्य यह कि, सच में उस शांताबाई का लडका उठकर बैठा था। उसे बहुत समाधान हुआ । वह बाई उस लड़के को (पोते को) लेकर बाबां के यहाँ आयी । दूर से ही उसने बाबा के दर्शन किये। इस प्रकार एक परमेश्वरने उस बच्चे को मौत के मुंह से बाहर निकाला यह पहला अनुभव इस एक परमेश्वर ने प्रथम उस घर में ही दिया। इसीतरह बाबांने केवल पिडित और दुःखी लोगों के दुःख दूर करने के लिये एक भगवंत की प्राप्ती की।
|| 🙏🙏नमस्कार जी 🙏🙏||
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