ईच्छा अनुसार भोजन
मोंगरकशा तालाबपर घटित घटना से सभी कुशलपूर्वक शाम को मंगरली इस गांव में पहुंचने पर महानत्यागी बाबा जुमदेवजी की प्रमुख उपस्थिती में भगवत कार्य की चर्चा बैठक प्रारंभ हुई। बैठक में उपस्थित सेवकों ने इस मार्ग पर जो तत्व, शब्द और नियम सिखाये है साथ ही इस मार्ग की उपासना करने पर उन्हें जो अनुभव आये उसपर अपने-अपने विचार व्यक्त किये तत्पश्चात बाबाने मार्गदर्शन किया सभी लोग आनंदमय वातावरण होने से बैठक बहुत देर तक चली । उस समय रात के बारह बजे थे ।
बैठक समाप्त होने पर महानत्यागी बाबा जुमदेवजीने उस गाँव के सेवकों से कहा, " हमें अभी केवल दूध की चाय पीनी है इस गाँव में आये हुए दो दिन हुए । लेकिन दुध की चाय नहीं मिली । वह अब चाहिए “ऎसी बाबांने इच्छा प्रकट की, यह सुनकर सेवक हडबडाया और उसने बाबां से विनती की कि. इतनी मध्यरात्री के समय इस गांव में दूध कहाँ से मिलेगा ? घर में भी दूध नही है । क्योंकि मेरे घर की भैंसे जंगल में चरने गई थी । तब बछडे भी उसके साथ थे उन बछडो ने भैस का संपूर्ण दूध पी लिया। भैंस जब शाम को जंगल से चरकर आयी तब मैं दूध निकालने के लिये गया था तब मैंस ने एक भी बूंद दूध नही दिया । अब बताओं बाबा मैं दूध की चाय कैसे पिलाऊँ ? तब बाबाने कहा, मुझे मालूम नही कि दूध कहाँ मिलेगा । तुम दुध कही से भी लाओ और हमें केवल दुध की चाय पिलाओं । वह सेवक गवली (ग्वाला) था और सामान्यतः अस्सी साल का बुजुर्ग था । उसने बाबा से कहा, बाबा इस जंगल में आस पास एक भी गांव नही । और इस गांव में रात दूध नही मिलता यह मेरे जीवन भर का अनुभव है। तब बाबा जुमदेवजी ने कहा मुझे तुम्हारा अनुभव मालूम नही और उसका कुछ करना भी नही है। हमें दुध की चाय अभी चाहिए । तब उस सेवकने बाबा को विनती कि, की बाबा आप मुझे मार्गदर्शन करें। कि मुझे दूध कहाँ से मिलेगा?
महानत्यागी बाबा जुमदेवजीने सभी को संबोधित करते हुए। कहा, मैंने एक परमेश्वर की कृपा प्राप्त की है भगवंत दूध देगा। तत्पश्चात बाबाने उस सेवक से कहा जिस भैस ने एक भी बुंद दूध नही दिया उसी भैंस को सामने लाओ और घर में जाकर बाबा हनुमानजी की प्रतिमा के समक्ष अगरबत्ती लगाकर कपूर लगाय और विनती करो कि, भगवान बाबा हनुमानजी, महानत्यागी बाबा जुमदेवजी को दूध की चाय चाहिये। अतः बाबा के लिये दूध दा। बाबाके ऐसा कहने पर उस सेवक ने बाबा के आदेश का पालन किया और उपरोक्तानुसार विनती की तत्पश्चात वह बाहर आया । भगवंत का नामस्मरण कर उसने उस भैस की पीठपर जोर से थाप मारी और बर्तन लेकर वह भैस का दूध निकालने लगा । आश्चर्य की बात यह कि जिस भैंसने दूध नही दिया था । उसी भैंस का दूध चर-चर कर निकालने लगा । उस भैंसने लगभग दो लिटर दूध दिया । इस मार्ग का सेवक नवरगांव का सरपंच श्री. वाघमारे यह गवली के पास देखने गया । तो उसे दूध से भरा हुआ बर्तन दिखा । उसने वह गंजी (बर्तन) लाकर बाबांके पास रखा । तब सब लोग भगवंत की यह लीला देख कर अवाक रह गये । तत्पश्चात बाबांने उस सेवक से कहा । इस संपूर्ण दूध की चाय बनाओ । उसमें जरा भी पानी मत डालो तथा बूंद भर दूध भी नही बचाना । तदनुसार उस संपुर्ण दूध की चाय बना कर वह सभी को दि गयी।
उस वृध्द गवली सेवक ने बाबां से कहा कि बाबा इसी भैंस की तरह दूसरी भैंस भी दूध देगी क्या ? इस पर बाबांने जवाब दिया। तुम अपना अनुभव लेकर देखो । तुम एकही भगवंत के मन से सेवक हो और दिये गये तत्व, शब्द, नियम से चलते होंगे तो परमेश्वर अवश्य लाभ देगा। परमेश्वर देता है लेकिन मानव का परमेश्वर पर विश्वास नही ।
इसलिये बाबाने तत्वों मे बताया है कि, 'इच्छा अनुसारभोजन' अर्थात मानवने कोई भी इच्छा परमेश्वर के सामने प्रकट की। तो वह उसे पुरा करता है। लेकिन उसके लिये एक लक्ष, एकचित एक भगवान मानकर सत्य कर्म करना चाहिए ।
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